किसे कहूँ मैं शिक्षित

किसे कहूँ मैं शिक्षित

मत कहो अपने को शिक्षित
शर्म आती है।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न ...देख तुम्हारी हरकतें
नज़र झुक जाती है ।

किसने कचरा फैलाया,
किसने काटा पेड़ों को,
किसने भूमि से भवन बनाए,
किसने बांटा देशों को।

भ्रष्टाचार का आलम तो देखो,
जगह जगह है फैलाया,
 चोरी-चोरी चुपके-चुपके,
किसनेअपना महल बनाया।

किसने  फैलाया दुराचार को,
किसने धर्म का शीश झुकाया,
भोले लोगों की आस्था पर
किसने छुरा चलाया है।

शिक्षित होकर हर गरीब को
लूटने का ठेका पाया है,
अकर्मण्यता पर भी तुमने,
रक्त से संचित धन कमाया है।

व्यर्थ क्यों दोष देते हो
उस गरीब की काया को,
जिसने अपने ललाट पर,
श्रम का टीका लगाया है।

पेड़ों को जिसने पूजा,
पत्थर को भगवान बनाया है,
धरती को जिसने मां,
कह कर गले लगाया है।

देख तुम्हारी हरकतें,
मन उसका भर आया है।
अरे! कैसे बनूं मैं शिक्षित?
इन शिक्षितों ने मेरा देश दफनाया है।

स्वरचित
सुरेश कुमार पाटीदार

कविता की समीक्षा छोटी बहन  डॉ. श्वेता पंड्या द्वारा की गई है । आप सभी सुधिजनों से निवेदन की इस पर टिप्पणी अवश्य करें । 


'किसे कहूँ मैं शिक्षित' शीर्षक कविता कवि श्री सुरेशकुमार पाटीदार द्वारा रचित है। इस कविता में कवि ने सीधे-सीधे भ्रष्ट राजनीतिक तंत्र पर गहरी चोट की है। यहाँ कवि का कहना है कि हमारे समाज का जो तथाकथित शिक्षित वर्ग है उसने हमारी प्रकृति, धार्मिक आस्था, गरीब वर्ग इत्यादि को किस प्रकार से आहत किया है, नष्ट किया है। प्रकृति के साथ तो ऐसा खिलवाड़ किया है कि सबकुछ परिवर्तित करने की अनावश्यक चेष्टा की है। उसके द्वारा किए गए अनापेक्षित विविध क्रियाकलापों पर कटाक्ष किया है। वे अपनी वेदना को निम्नलिखित पंक्तियों के माध्यम से रेखांकित करते हैं- देख तुम्हारी हरकतें,
मन उसका भर आया है।
अरे! कैसे बनूँ मैं शिक्षित ?
इन शिक्षितों ने मेरा देश दफनाया है।
कवि ने किसने कचरा फैलाया,...... किसने बाँटा देशों को।, भ्रष्टाचार का आलम तो देखो,....... किसने अपना महल बनाया।
पंक्तियों के माध्यम से भ्रष्ट राजनीतिक तंत्र की पोल खोल कर रख दी है। वे कहते हैं कि शिक्षित होकर भी हर गरीब को लूटने का अपराध तुम्हारे द्वारा किया गया है और बावजूद इसके तुम उस गरीब को व्यर्थ क्यों दोष देते हो ?
जिसने अपने ललाट पर
श्रम का टीका लगाया है।
उपर्युक्त पंक्तियों के माध्यम से कवि श्री पाटीदार जी ने बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति दी है। अतः कहा जा सकता है कि हमारे देश की जो राजनैतिक व्यवस्था है उसका बहुत ही स्पष्ट रूप इस कविता में कवि ने परिलक्षित किया है।
डॉ. श्वेता पंड्या
शासकीय महाविद्यालय
कायथा, उज्जैन 💐💐
अवकाश हेतु प्रार्थना पत्र।