विचारों के पैसेंजर

जीवन एक रेल है
विचारों के पैसेंजर चढ़ते - उतरते है
कोई इसे गंदा कर चला जाए,
कोई सुधरने की नसीहत दे जाते हैं. 
कोई अपने हक के लिए लड़ते हैं
कोई खुदगर्ज हो  जम जाते है
कोई चुपचाप आते और चले जाते हैं
कोई दुनिया बदलने पर उतारू हो जाते हैं
सबका अपना क्षणिक महत्व है
उनके स्टेशन आने तक |
इन विचारों से भरी ट्रेन में एक बूढ़े विचार ने कहा
तुम बेकार के विचार क्यों आ जाते हो ?
मन रूपी डिब्बे को यूं ही उलझा जाते हो
कोई काम है कि नहीं तुम्हारे पास
इस इंसान को इंसान ही रहने दो
इसे इंसानियत का पुतला क्यों बना जाते हो ?

स्वरचित
सुरेश कुमार पाटीदार
20.03.2018
अवकाश हेतु प्रार्थना पत्र।