’’’’’’’’’’’’’’’श्री’’’’’’’’’’’’’’
पर उपदेश कुशल बहुतेरे
गोस्वामी तुलसीदास जी ने सत्य ही कहा है-’’पर उपदेश कुशल बहुतेरे।’’ अर्थात् दूसरों को उपदेश देना तो बहुत आसान है लेकिन स्वयं उन उपदेशों पर अमल करना कठिन। वर्तमान समय में उपदेशक ज़्यादा है, अमलकर्ता नहीं। यदि व्यक्ति स्वयं आदर्शों का पालन करने लग जाए तो उसे उपदेश देने की ज़रूरत नहीं होगी। व्यक्ति अनुकरण कत्र्ता होता है। वह कार्य का अनुकरण करता है, उपदेशों का नहीं। वास्तव में हमें समाज को कुछ देना हैं तो समाज के लिए उत्कर्ष कार्य करने होंगे। जिनको आने वाली पीढ़ी अपना सकें, जिनसे कुछ सीख सकें। आज का युवा हर वस्तु, परम्परा और उपदेश को तर्क के तराजू पर तौलता, परखता व देखता है कि वे उसके लिए उपयोगी व ग्राह्य है कि नहीं। इन प्रश्नों के संतोष जनक उत्तर मिलने पर ही वह उन्हें अपनाता हैं। समाज के वरिष्ठजनों की जि़म्मेंदारी बनती है कि वे उन आदर्शों का मूल्य स्थापित करें, जिनको वे समाज में परोसना चाहते हैं। तभी उन्हें लोगों द्वारा स्वीकार किया जाएगा। एक व्यापारी नवीन सामग्रियों को अपनाकर दिन-प्रतिदिन अपने व्यापार को बढ़ाता है, लेकिन अपना मुनाफ़ा नहीं छोड़ता। उसी प्रकार समाज में नवीन आदर्शों को भी स्थापित करना है लेकिन उन आदर्शों की उत्कृष्टता से कोई समझौता नहीं करना चाहिए। व्यापारी सदैव ग्राहकों को जोड़ने के लिए तत्पर रहता है ताकि उसका व्यापार चलता रहे। अरे! यह तो व्यापार है। हम तो उन आदर्शों की बात कर रहे हैं जिन पर सामाजिक प्रतिष्ठा टिकी हुई है। फिर हम उनको क्यों नज़र अंदाज़ कर रहे हैं ? हमें सामाजिक प्रतिष्ठा बनाए रखना है तो समाज के युवा वर्ग को जोड़ना होगा, उनको जिम्मेदारियों से परिचित कराना होगा, उनके उद्देश्यों को स्पष्ट करना होगा। नहीं तो आज के युवा भटक रहे है और भटकते रहेंगे। विशेषकर पाटीदार समाज के युवा आज भी पारम्परिक ही बने हुए हैं, जिम्मेदारियों का एहसास उनसे दूर है। इसके लिए जिम्मेदार घर और समाज के वरिष्ठ लोग ही है। माता-पिता के लिए उनका पुत्र एक बच्चा होता है, लेकिन उसे सदैव बच्चा समझते रहना सबसे बड़ी भूल है। प्रकृति उसे समयानुसार परिपक्व बनाती है, उसमें शारीरिक एवं मानसिक सभी प्रकार के परिवर्तन होते हैं तो हम उसे समय के साथ जिम्मेदारियाँ क्यों नहीं देते हैं ? उसके मार्गदर्शक क्यों नहीं बनते हैं ? पाटीदार समाज के युवा पढ़ाई को केवल औपचारिक समझ रहे हैं, वे इसलिए पढ़ रहे हैं कि घर वालों की इच्छा हैं। उसे ज्ञानार्जन के लिए पढ़ना चाहिए, उसे समाज , देश और लोककल्याण के लिए पढ़ना चाहिए। ये सारी बातें केवल उपदेशात्मक नहीं बल्कि व्यावहारिक एवं स्वाभिमान के लिए होना चाहिए। पाटीदार समाज दिनोंदिन उन्नति की ओर बढ़ रहा है, विकास की नयी इबारत गढ़ रहा हैं। बस, ज़रूरत है उचित मार्गदर्शन व आपसी सहयोग की, जो समाज के वरिष्ठ जनों द्वारा तो पूरी होगी लेकिन कैसे ? यही विचारणीय प्रश्न हैं।
सुरेश कुमार पाटीदार
सुरेश कुमार पाटीदार