काव्य भाग
1 हम तौ एक एक करि जांनां, संतों देखत जग बौराना
कवि परिचय
कबीर
·
जीवन परिचय: कबीरदास का नाम संत कवियों में सर्वोपरि है। इनके जन्म और मृत्यु
के बारे में अनेक किवदंतियाँ प्रचलित हैं। इनका जन्म 1398 ई में वाराणसी
(उत्तर प्रदेश) के लहरतारा नामक स्थान पर हुआ। कबीरदास ने स्वयं को काशी का जुलाहा
कहा है। इनके विधिवत् साक्षर होने का कोई प्रमाण नहीं मिलता। ये स्वयं कहते हैं- “ससि कागद छुयो नहि
कलम गहि नहि हाथ।”
इन्होंने देशाटन और सत्संग से ज्ञान
प्राप्त किया। किताबी ज्ञान के स्थान पर आँखों देखे सत्य और अनुभव को प्रमुखता दी-‘‘में कहता हों आँखन
देखी, तू कहता कागद की लखी।” इनका देहावसान 1518
ई में बस्ती के निकट मगहर में हुआ।
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रचनाएँ: कबीरदास के पदों का संग्रह बीजक नामक पुस्तक है, जिसमें साखी. सबद
एवं रमैनी संकलित हैं।
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साहित्यिक परिचय: कबीरदास भक्तिकाल की निर्गुण धारा के ज्ञानाश्रयी शाखा के
प्रतिनिधि कवि हैं। इन पर नाथों. सिद्धों और सूफी संतों की बातों का प्रभाव है। वे
कमकांड और वेद-विचार के विरोधी थे तथा जाति-भेद, वर्ण-भेद और संप्रदाय-भेद के स्थान पर
प्रेम, सद्भाव और समानता का समर्थन करते थे: कबीर घुमक्कड़ थे। इसलिए इनकी
भाषा में उत्तर भारत की अनेक बोलियों के शब्द पाए जाते हैं। वे अपनी बात को साफ
एवं दो टूक शब्दों में प्रभावी ढंग से कह देने के हिमायती थे ‘‘बन पड़ तो सीधे-सीधे, नहीं तो दरेरा देकर।”
पाठ का सारांश
पहले पद में कबीर ने परमात्मा को
सृष्टि के कण-कण में देखा है, ज्योति रूप में स्वीकारा है तथा उसकी व्याप्ति चराचर संसार में
दिखाई है। इसी व्याप्ति को अद्वैत सत्ता के रूप में देखते हुए विभिन्न उदाहरणों के
द्वारा रचनात्मक अभिव्यक्ति दी है। कबीरदास ने आत्मा और परमात्मा को एक रूप में ही
देखा है। संसार के लोग अज्ञानवश इन्हें अलग-अलग मानते हैं। कवि पानी, पवन, प्रकाश आदि के
उदाहरण देकर उन्हें एक जैसा बताता है। बाढ़ी लकड़ी को काटता है, परंतु आग को कोई
नहीं काट सकता। परमात्मा सभी के हदय में विद्यमान है। माया के कारण इसमें अंतर
दिखाई देता है।
दूसरे पद में कबीर ने बाहय आडंबरों पर
चोट करते हुए कहा है कि अधिकतर लोग अपने भीतर की ताकत को न पहचानकर अनजाने में
अवास्तविक संसार से रिश्ता बना बैठते हैं और वास्तविक संसार से बेखबर रहते हैं।
कवि के अनुसार यह संसार पागल हो गया है। यहाँ सच कहने वाले का विरोध तथा झूठ पर
विश्वास किया जाता है हिंदू और मुसलमान राम और रहीम के नाम पर लड़ रहे हैं, जबकि दोनों ही
ईश्वर का मर्म नहीं जानते। दोनों बाहय आडंबरों में उलझे हुए हैं। नियम, धर्म, टोपी, माला, छाप. तिलक, पीर, औलिया, पत्थर पूजने वाले
और कुरान की व्याख्या करने वाले खोखले गुरु-शिष्यों को आडंबर बताकर, उनकी निंदा की गई
है।
व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
1.
हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन
नाहिंन पहिचांनां।
जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न
काटे कोई।
सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै
सोई।
एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति
समांनां।
एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा
सांनां।
माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर
गरबांनां
निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर
दिवांनां। (पृष्ठ 131)
शब्दार्थ
एक-परमात्मा, एक। दोई-दो।
तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश।
समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक
साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर।
व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना।
नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के
सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम
तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते
हैं।
व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो
जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान
लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की
स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा
को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार
में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी
एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार
अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी
प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय
में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में
फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर
घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य
निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर
का दीवाना हो गया है।
विशेष-
1. कबीर ने आत्मा और
परमात्मा को एक बताया है।
2. उन्होंने माया-मोह व गर्व की व्यर्थता
पर प्रकाश डाला है।
3. ‘एक-एक’ में यमक अलंकार है।
4. ‘खाक’ और ‘कोहरा’ में रूपकातिशयोक्ति
अलंकार है।
5. अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।
6. सधुक्कड़ी भाषा है।
7. उदाहरण अलंकार है।
8. पद में गेयता व संगीतात्मकता है।
● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
1. कबीरदास परमात्मा के विषय में क्या कहते हैं?
2. भ्रमित लोगों पर कवि की क्या टिप्पणी
है?
3. संसार नश्वर है, परंतु आत्मा अमर है-स्पष्ट कीजिए।
4. कबीर ने किन उदाहरणों दवारा सिदध किया
है कि जग में एक सत्ता है?
उत्तर-
1. कबीरदास कहते हैं
कि परमात्मा एक है। वह हर प्राणी के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी
स्वरूप धारण किया हो।
2. जो लोग आत्मा व परमात्मा को अलग-अलग
मानते हैं, वे भ्रमित हैं। वे ईश्वर को पहचान नहीं पाए। उन्हें नरक की
प्राप्ति होती है।
3. कबीर का कहना है कि जिस प्रकार लकड़ी
को काटा जा सकता है, परंतु उसके अंदर की अग्नि को नहीं काटा जा सकता, उसी प्रकार शरीर
नष्ट हो जाता है, परंतु आत्मा अमर है। उसे समाप्त नहीं किया जा सकता।
4. कबीर ने जना की सत्ता एक होने यानी ईश्वर
एक है के समर्थन में कई उदाहरण दिए हैं। वे कहते हैं कि संसार में एक जैसी पवन, एक जैसा पानी बहता
है। हर प्राणी में एक ही ज्योति समाई हुई है। सभी बर्तन एक ही मिट्टी से बनाए जाते
हैं, भले ही उनका स्वरूप अलग-अलग होता है।
2.
सतों दखत जग बौराना।
साँच कहीं तो मारन धार्वे, झूठे जग पतियाना।
नमी देखा धरमी देखा, प्राप्त करें असनाना।
आतम मारि पखानहि पूजें, उनमें कछु नहि ज्ञाना।
बहुतक देखा पीर औलिया, पढ़े कितब कुराना।
कै मुरीद तदबीर बतार्वे, उनमें उहैं जो ज्ञाना।
आसन मारि डिभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना।
पीपर पाथर पूजन लागे, तीरथ गर्व भुलाना।
टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना।
साखी सब्दहि गावत भूले, आतम खबरि न जाना।
हिन्दू कहैं मोहि राम पियारा, तुर्क कहैं रहिमाना।
आपस में दोउ लरि लरि मूए, मम न काहू जाना।
घर घर मन्तर देत फिरत हैं, महिमा के अभिमाना।
गुरु के सहित सिख्य सब बूड़े, अत काल पछिताना।
कहैं कबीर सुनो हो सती, ई सब भम भुलाना।
केतिक कहीं कहा नहि माने, सहजै सहज समाना। (पृष्ठ 131-132)
शब्दार्थ
जग-संसार। बौराना-पागल होना। साँच-सच।
मारन-मारने। धावै-दौड़े। पतियाना-विश्वास करना। नेमी-नियमों का पालन करने वाला।
धरमी-धर्म का पालन करने वाला। प्राप्त-सुबह। असनाना-स्नान करना। आतम-स्वयं।
पखानहि-पत्थरों को, पत्थरों की मूर्तियों को। पीर औलिया-धर्म गुरु और संत ज्ञानी।
कितेब-ग्रंथ। मुरीद-शिष्य। तदबीर-उपाय। डिंभ धरि-घमंड करके। गुमाना-घमंड।
पाथर-पत्थर। पहिरे-पहने। छाप तिलक अनुमाना-माथे पर तिलक व छापा लगाया। साखी-दोहा, साक्षी। सब्दहि-वह
मंत्र जो गुरु शिष्य को दीक्षा के अवसर पर देता है, पद। गावत-गाते। आतम खबरि-आत्मा का
ज्ञान, आतम ज्ञान। मोहि-मुझे। तुर्क-मुसलमान। दोउ-दोनों। लरि-लड़ना।
मुए-मरना। मर्म-रहस्य। काहू-किसी ने। मन्तर-गुप्त वाक्य बताना। महिमा-उच्चता।
सिख्य-शिप्य। बूड़े-डूबे। अंतकाल-अंतिम समय। भर्म-संदेह। केतिक कहीं-कहाँ तक कहूँ।
सहजै-सहज रूप से। समाना-लीन होना।
प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण
परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में उन्होंने धर्म के नाम पर हो रहे
बाहय आडंबरों पर तीखा प्रहार किया है।
व्याख्या-कबीरदास सज्जनों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि देखो, यह संसार पागल हो
गया है। जो व्यक्ति सच बातें बताता है, उसे यह मारने के लिए दौड़ता है तथा जो
झूठ बोलता है, उस पर यह विश्वास कर लेता है। कवि हिंदुओं के बारे में बताता है कि
ऐसे लोग बहुत हैं जो नियमों का पालन करते हैं तथा धर्म के अनुसार अनुष्ठान आदि
करते हैं। ये प्रातः उठकर स्नान करते हैं। ये अपनी आत्मा को मारकर पत्थरों को
पूजते हैं। वे आत्मचिंतन नहीं करते। इन्हें अपने ज्ञान पर घमंड है, परंतु उन्होंने कुछ
भी ज्ञान प्राप्त नहीं किया है। मुसलमानों के विषय में कबीर बताते हैं कि उन्होंने
ऐसे अनेक पीर, औलिया देखे हैं जो कुरान का नियमित पाठ करते हैं। वे अपने शिष्यों
को तरह-तरह के उपाय बताते हैं जबकि ऐसे पाखंडी स्वयं खुदा के बारे में नहीं जानते
हैं। वे ढोंगी योगियों पर भी चोट करते हैं जो आसन लगाकर अहंकार धारण किए बैठे हैं
और उनके मन में बहुत घमंड भरा पड़ा है।
कबीरदास कहते हैं कि लोग पीपल, पत्थर को पूजने लगे
हैं। वे तीर्थ-यात्रा आदि करके गर्व का अनुभव करते हैं। वे ईश्वर को भूल जाते हैं।
कुछ लोग टोपी पहनते हैं, माला धारण करते हैं, माथे पर तिलक लगाते हैं तथा शरीर पर
छापे बनाते हैं। वे साखी व शब्द को गाना भूल गए हैं तथा अपनी आत्मा के रहस्य को
नहीं जानते हैं। इन लोगों को सांसारिक जीवन पर घमंड है। हिंदू कहते हैं कि उन्हें
राम प्यारा है तो तुर्क रहीम को अपना बताते हैं। दोनों समूह ईश्वर की श्रेष्ठता के
चक्कर में लड़कर मार जाते हैं, परंतु किसी ने भी ईश्वर की सत्ता के रहस्य को नहीं जाना।
समाज में पाखंडी गुरु घर-घर जाकर
लोगों को मंत्र देते फिरते हैं। उन्हें सांसारिक माया का बहुत अभिमान है। ऐसे गुरु
व शिष्य सब अज्ञान में डूबे हुए हैं। इन सबको अंतकाल में पछताना पड़ेगा। कबीरदास
कहते हैं कि हे संतों, वे सब माया को सब कुछ मानते हैं तथा ईश्वर-भक्ति को भूल बैठे हैं।
इन्हें कितना ही समझाओ, ये नहीं मानते हैं। सच यही है कि ईश्वर तो सहज साधना से मिल जाते
हैं।
विशेष-
1. कवि ने धार्मिक
आडंबरों पर करारी चोट की है।
2. उन्होंने पाखंडी धर्मगुरुओं को लताड़
लगाई है।
3. सधुक्कड़ी भाषा है।
4. अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।
5. चित्रात्मकता है।
7. कबीर का अक्खड़पन स्पष्ट है।
8. पद में गेयता व संगीतात्मकता है।
● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
1. कबीर किसे संबोधित
करते हैं तथा क्यों?
2. कवि संसार को पागल क्यों कहता है?
3. कवि ने हिंदुओं के किन आडंबरों पर चोट
की है तथा मुसलमानों के किन पाखंडों पर व्यंग्य किया है?
4. अज्ञानी गुरुओं व शिष्यों की क्या गति
होगी?
उत्तर-
1. कबीर दास जी संसार के विवेकी व सज्जन लोगों को संबोधित कर रहे हैं, क्योंकि वे संतों
को धार्मिक पाखंडों के बारे में बताकर भक्ति के सहज मार्ग को बताना चाहते हैं।
2. कवि संसार को पागल कहता है। इसका कारण
है कि संसार सच्ची बात कहने वाले को मारने के लिए दौड़ता है तथा झूठी बात कहने
वाले पर विश्वास कर लेता है।
3. कबीर ने हिंदुओं के नित्य स्नान, धार्मिक अनुष्ठान, पीपल-पत्थर की पूजा, तिलक, छापे, तीर्थयात्रा आदि
आडंबरों पर चोट की है। इसी तरह उन्होंने मुसलमानों के ईश्वर-प्राप्ति के उपाय, टोपी पहनना, पीर की पूजा, शब्द गाना आदि
पाखंडों पर व्यंग्य किया है।
4. अज्ञानी गुरुओं व उनके शिष्यों को
अंतकाल में पछताना पड़ता है, क्योंकि ज्ञान के अभाव में वे गलत मार्ग पर चलते हैं तथा अपना
विनाश कर लेते हैं।
● काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न
हम तो एक एक करि जाना।
दोइ कहैं तिनहीं कों दोजग जिन नाहिन
पहिचाना।
एकै पवन एक ही पानीं एके जोति समाना।
एकै खाक गढ़े सब भाड़े एकै कांहरा
सना।
जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटे अगिनि न
काटे कोई।
सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरे सरूपैं
सोई।
माया देखि के जगत लुभाना काहे रे नर
गरबाना।
निरर्भ भया कछू नहि ब्याएँ कहैं कबीर
दिवाना।
प्रश्न
1. भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
2. शिल्प-सौदर्य बताइए।
उत्तर-
1. इस पद में कवि ने
ईश्वर की एक सत्ता को माना है। संसार के हर प्राणी के दिल में ईश्वर है, उसका रूप चाहे कोई
भी हो। कवि माया-मोह को निरर्थक बताता है।
2.
● इस पद में कबीर की
अक्खड़ता व निभीकता का पता चलता है।
● आम बोलचाल की सधुक्कड़ी भाषा है।
● ‘जैसे बाढ़ी. काटै। कोई’ में उदाहरण
अलंकार है। बढ़ई, लकड़ी व आग का उदाहरण प्रभावी है।
● ‘एक एक’ में यमक अलंकार है-एक-परमात्मा, एक-एक।
● अनुप्रास अलंकार की छटा है-काटै। कोई, सरूप सोई, कहै कबीर।
● ‘खाक’ व ‘कोहरा’ में रूपकातिशयोक्ति
अलंकार है।
● पूरे पद में गेयता व संगीतात्मकता है।
2.
सतों दखत जग बौराना।
साँच कहौं तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना।।
नेमी देखा धरमी देखा, प्राप्त करें
असनाना।
आतम मारि पखानहि पूजे, उनमें कछु नहि
ज्ञाना।।
बहुतक देखा पीर औलिया, पढ़े कितब कुराना।
कै मुरीद तदबीर बतार्वे, उनमें उहै जो
ज्ञाना।।
आसन मारि डिभ धरि बैठे, मन में बहुत
गुमाना।
पीपर पाथर पूजन लागे, तीरथ गर्व भुलाना।।
टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना।
साखी सब्दहि गावत भूले, आतम खबरि न जाना।।
हिन्दू कहै मोहि राम पियारा, तुर्क कह रहमाना।
आपस में दोउ लरि लरि मूए, मम न काहू जाना।।
घर घर मन्तर देत फिरत हैं, महिमा के अभिमाना।
गुरु के सहित सिख्य सब बूड़, अत काल पछिताना।।
कहैं कबीर सुनी हो सती, ई सब भम भुलाना।
केतिक कहीं कहा नहि माने, सहजै सहज समाना।।
प्रश्न
1. भाव-सौंदर्य स्पष्ट
करें।
2. शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
1. इस पद में कवि ने
संसार की गलत प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया है। वे सांसारिक जीवन को सच मानते हैं।
समाज में हिंदू-मुसलमान धर्म के नाम लड़ते हैं। वे तरह-तरह के आडंबर रचाकर स्वयं
को श्रेष्ठ जताने की कोशिश करते हैं। कवि संसार को इन आडंबरों की निरर्थकता के
बारे में बार-बार बताता है, परंतु उन पर कोई प्रभाव नहीं होता। कबीर सहज भक्ति मार्ग को सही
मानता है।
2.
● कवि ने आत्मबल पर
बल दिया है तथा बाहय आडंबरों को निरर्थक बताया है।
● अनुप्रास अलंकार की छटा है-
– पीपर पाथर पूजन
– कितेब कुराना
– भर्म भुलाना
– सहजै सहज समाना
– सहित शिष्य सब
– साखी सब्दहि
– केतिक कहौं कहा
● ‘घर-घर’, ‘लरि-लरि’ में
पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
● आम बोलचाल की सधुक्कड़ी भाषा है।
● भाषा में व्यंग्यात्मक है।
● पूरे पद में गेयता व संगीतात्मकता है।
● चित्रात्मकता है।
● शांत रस है।
● प्रसाद गुण विद्यमान है।
पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न
पद के साथ
प्रश्न 1:
कबीर की दृष्टि में ईश्वर एक है। इसके
समर्थन में उन्होंने क्या तर्क दिए हैं?
उत्तर-
कबीर ने एक ही ईश्वर के समर्थन में
अनेक तर्क दिए हैं, जो निम्नलिखित हैं
1.
संसार में सब जगह
एक ही पवन व जल है।
2.
सभी में एक ही
ईश्वरीय ज्योति है।
3.
एक ही मिट्टी से
सभी बर्तनों का निर्माण होता है।
4.
एक ही परमात्मा का
अस्तित्व सभी प्राणों में है।
5.
प्रत्येक कण में
ईश्वर है।
6.
दुनिया के हर जीव
में ईश्वर व्याप्त है।
प्रश्न 2:
मानव शरीर का निर्माण किन पंच तत्वों
से हुआ है?
उत्तर-
मानव शरीर का निर्माण निम्नलिखित पाँच
तत्वों से हुआ है-
1.
अग्नि
2.
वायु
3.
पानी
4.
मिट्टी
5.
आकाश
प्रश्न 3:
जैसे बाढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न
कार्ट कोई।
सब छटि अंतरि तूही व्यापक धरे सरूपै
सोई।
इसके आधार पर बताइए कि कबीर की वृष्टि
में ईश्वर का क्या स्वरूप है?
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियों का अर्थ है कि
बढ़ई काठ (लकड़ी) को काट सकता है, पर आग को नहीं काट सकता, इसी प्रकार ईश्वर घट-घट में व्याप्त
है अर्थात् कबीर कहना चाहते हैं कि जिस प्रकार आग को सीमा में नहीं बाँधा जा सकता
और न ही आरी से काटा जा सकता है, उसी प्रकार परमात्मा हम सभी के भीतर व्याप्त है। यहाँ कबीर का
आध्यात्मिक पक्ष मुखर हो रहा है कि आत्मा (ईश्वर का रूप) अजर-अमर, सर्वव्यापक है।
आत्मा को न मारा जा सकता है, न यह जन्म लेती है, इसे अग्नि जला नहीं सकती और पानी भिगो
नहीं सकता। यह सर्वत्र व्याप्त है।
प्रश्न 4:
कबीर ने अपने को दीवाना क्यों कहा है?
उत्तर-
यहाँ ‘दीवाना’ का अर्थ है-पागल।
कबीरदास ने परमात्मा का सच्चा रूप पा लिया है। वे उसकी भक्ति में लीन हैं, जबकि संसार बाहय
आडंबरों में उलझकर ईश्वर को खोज रहा है। अत: कबीर की भक्ति आम विचारधारा से अलग है
इसलिए वह स्वयं को दीवाना कहता है।
प्रश्न 5:
कबीर ने ऐसा क्यों कहा है कि संसार
बौरा गया है?
उत्तर-
कबीर संसार को सच्चाई (परम तत्व की
सर्वव्यापकता) के विषय में बताते हैं तो संसारी लोग उन्हें मारने के लिए भागते हैं
और झूठी बातों पर विश्वास करते हैं। संसार का यह व्यवहार कबीर को बड़ा ही अजीब
लगता है। इसलिए वे कहते हैं कि संसार बौरा गया है।
प्रश्न 6:
कबीर ने नियम और धर्म का पालन करने
वाले लोगों की किन कमियों की ओर संकेत किया है?
उत्तर-
कबीर ने नियम और धर्म का पालन करने
वाले लोगों की निम्नलिखित कमियों की ओर संकेत किया है-
1. प्रात:काल स्नान
करने वाले, पत्थरों, वृक्षों की पूजा करने वाले अंधविश्वासी हैं। वे धर्म के सच्चे
स्वरूप को नहीं पहचान पाते तथा आत्मज्ञान से वंचित रहते हैं।
2. मुसलमान भी पीर-औलिया की बातों का
अनुसरण करते हैं। वे मंत्र आदि लेने में विश्वास रखते हैं। ईश्वर सबके हृदय में
विद्यमान है, परंतु ये उसे पहचान नहीं पाते।
प्रश्न 7:
अज्ञानी गुरुओं की शरण में जाने पर
शिष्यों की क्या गति होती है?
उत्तर-
अज्ञानी गुरु स्वयं सन्मार्ग पर नहीं
है तो वह शिष्य को क्या मार्ग दिखाएगा? भ्रमित और बायाडंबरों से पूर्ण गुरु
के साथ रहनेवाले शिष्यों को मंज़िल नहीं मिलती। वे अज्ञानी गुरु समेत डूब जाते हैं
और अंतकाल में पश्चाताप करते हैं जबकि उस समय वे अपना जीवन व्यर्थ गॅवा चुके होते
हैं।
प्रश्न 8:
बाहय आडंबरों की अपेक्षा स्वयं (आत्म)
को पहचानने की बात किन पंक्तियों में कही गई है? उन्हें अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-
बाहय आडंबरों की अपेक्षा स्वयं को
पहचानने की बात निम्नलिखित पंक्तियों में कही गई है-
टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना।
साखी सब्दहि गावत भूले, आत्म खबरि न जाना।
इसका अर्थ यह है कि
हिंदू-मुसलमान-दोनों धर्म के बाहरी स्वरूप में उलझे रहते हैं। कोई टोपी पहनता है
तो कोई माला पहनता है। माथे पर तिलक व शरीर पर छापे लगाकर अहकार दिखाते हैं। वे
साखी-सबद आदि गाकर अपने आत्मस्वरूप को भूल जाते हैं।
पद के आस-पास
प्रश्न 1:
अन्य संत कवियों नानक, दादू और रैदास आदि के ईश्वर संबंधी विचारों का संग्रह करें और उन
पर एक परिचर्चा करें।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।
प्रश्न 2:
कबीर के पदों को शास्त्रीय संगीत और
लोक संगीत दोनों में लयबद्ध भी किया गया है; जैसे-कुमारगंधर्व, भारती बंधु और प्रहलाद सिंह टिपाणिया आदि द्वारा गाए गए पद। इनके
कैसेट्स अपने पुस्तकालय के लिए मैंगवाएँ और पादयपुस्तक के पदों को भी लयबदध करने का प्रयास
करें।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।
अन्य हल प्रश्न
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1:
‘हम तो एक एक करि जामा’ – पद का
प्रतिपादय स्पष्ट करें।
उत्तर-
इस पद में कबीर ने परमात्मा को सृष्टि
के कण-कण में देखा है, ज्योति रूप में स्वीकारा है तथा उसकी व्याप्ति चराचर संसार में
दिखाई है। इसी व्याप्ति को अद्वैत सत्ता के रूप में देखते हुए विभिन्न उदाहरणों के
द्वारा रचनात्मक अभिव्यक्ति दी है। कबीरदास ने आत्मा और परमात्मा को एक रूप में ही
देखा है। संसार के लोग अज्ञानवश इन्हें अलग-अलग मानते हैं। कवि पानी, पवन, प्रकाश आदि के
उदाहरण देकर उन्हें एक जैसा बताता है। बाढ़ी लकड़ी को काटता है, परंतु आग को कोई
नहीं काट सकता। परमात्मा सभी के हृदय में विद्यमान है। माया के कारण इसमें अंतर
दिखाई देता है।
प्रश्न 2:
‘सतों देखो जग बौराना-पद का प्रतिपादय
स्पष्ट करें।
उत्तर-
इस पद में कबीर ने बाहय आडंबरों पर
चोट की है। वे कहते हैं कि अधिकतर लोग अपने भीतर की ताकत को न पहचानकर अनजाने में
अवास्तविक संसार से रिश्ता बना बैठते हैं और वास्तविक संसार से बेखबर रहते हैं।
कबीरदास कहते हैं कि यह संसार पागल हो गया है। यहाँ सच कहने वाले का विरोध तथा झूठ
पर विश्वास किया जाता है। हिंदू और मुसलमान राम और रहीम के नाम पर लड़ रहे हैं, जबकि दोनों ही
ईश्वर का मर्म नहीं जानते। दोनों बाहय आडंबरों में उलझे हुए हैं। नियम, धर्म, टोपी, माला, छाप, तिलक, पीर, औलिया, पत्थर पूजने वाले
और कुरान की व्याख्या करने वाले खोखले गुरु-शिष्यों को आडंबर बताकर उनकी निंदा की
गई है।
प्रश्न 3:
ईश्वर के स्वरूप के विषय में कबीर
क्या कहते हैं?
उत्तर-
कबीरदास कहते हैं कि ईश्वर एक है। और
उसका कोई निश्चित रूप या आकार नहीं है। वह सर्वव्यापी है। अपनी बात को प्रमाणित
करने के लिए उन्होंने कई तर्क दिए हैं; जैसे-संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है
तथा एक ही प्रकार का प्रकाश सबके अंदर समाया हुआ है। यहाँ तक कि एक ही प्रकार की
मिट्टी से कुम्हार अलग-अलग प्रकार के बर्तन बनाता है। आगे कहते है कि बढ़ई लकड़ी
को काटकर अलग कर सकता है परंतु आग को नहीं। यानी मूलभूत तत्वों (धरती, आसमान, जल, आग, और हवा) को छोड़कर
शेष सबको काट कर आप अलग कर सकते हो। इसी तरह से शरीर नष्ट हो जाता है किंतु आत्मा
सदैव बनी रहती। आत्मा परमात्मा का ही अंश है जो अलग-अलग रूपों में सबमें समाया हुआ
है। अत: ईश्वर एक है उसके रूप अनेक हो सकते हैं।
प्रश्न 4:
परमात्मा को पाने के लिए कबीर किन
दोषों से दूर रहने की सलाह देते हैं?
उत्तर-
परमात्मा को पाने के लिए कबीर मोह, माया, अज्ञान, घमंड आदि से दूर
रहने की सलाह देते हैं। वे जीवन-यापन के भय से मुक्ति की चेतावनी भी देते हैं।
क्योंकि मोह, माया, अज्ञान, घमंड तथा भय आदि परमात्मा को पाने में बाधक हैं। कबीर दास के
अनुसार असली साधक में इन दुर्गुणों का समावेश नहीं होता है।
प्रश्न 5:
कबीर पाखंडी गुरुओं के संबंध में क्या
टिप्पणी करते हैं?
उत्तर-
कबीर कहते हैं कि पाखंडी गुरुओं को
कोई ज्ञान नहीं होता। वे घूम-घूमकर मंत्र देकर शिष्य बनाते हैं। ये शिष्यों से गलत
कार्य करवाते हैं। यानी ये मानव समाज को अलग-अलग धार्मिक चौपालों के कट्टर
प्रतिनिधि बनाकर समाज में धार्मिक भेद-भाव का वातावरण बनाते हैं। फलस्वरूप समाज
में कटुता का भाव पैदा होता है। अत: ऐसे गुरुओं से हमें बचना चाहिए। नहीं तो अंतत:
पछताना पड़ेगा।
प्रश्न 6:
कबीर की दृष्टि में किन लोगों को
आत्मबोध नहीं होता?
उत्तर-
कबीर का मानना है कि वे लोग आत्मबोध
नहीं पा सकते जो बाहय आडंबरों में उलझे रहते हैं। वे सत्य पर विश्वास न करके झूठ
को सही मानते हैं। धर्म के ठेकेदार लोगों को पाखंड के द्वारा ईश्वर प्राप्ति का
मार्ग बताते हैं, जबकि वे सभी गलत हैं। उनके तरीकों से अह भाव का उदय होता है; जबकि ईश्वर की प्राप्ति
सहज भाव से प्राप्त की जा सकती है।