सफलता

                                            सफलता

    विद्यार्थी जीवन हो या सामाजिक जीवन, दोनों ही स्थितियों में मनुष्य का लक्ष्य निश्चित होना चाहिए। लक्ष्य के बिना भटकाव होगा और सफलता प्राप्ति का प्रतिशत नगण्य। विद्यार्थी को चाहिए कि वह अपना लक्ष्य निश्चित करें, फिर लक्ष्य प्राप्ति के साधन निर्धारित करें तत्पश्चात् उनका प्रयोग करते हुए परिश्रम के बल पर लक्ष्य प्राप्ति की ओर बढ़े। इस प्रकार लक्ष्य प्राप्त करना सरल होगा। लेकिन बेरोज़गारों का एक बड़ा कुनबा हमें देखने को मिलता हैं। उसका प्रमुख कारण लक्ष्य का निश्चित न होना या कहें कि लक्ष्य प्राप्ति की पूर्व सुयोजना का निर्धारण न करना है। ज्ञानार्जन के साथ-साथ शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य रोज़गार प्राप्ति भी है। चाहे वह स्वरोज़गार हो या अन्य रोज़गार। ये तभी संभव है जब हम किसी एक लक्ष्य को निश्चित करें एवं उसे प्राप्त करने के लिए सुनियोजित ढंग से परिश्रम करें। यही स्थिति सामाजिक जीवन में भी है। व्यक्ति का अपने कार्य के पीछे एक लक्ष्य निश्चित होना चाहिए, चाहे वह कार्य कृषि का हो, व्यवसाय का हो या अन्य। जब तक वह कोई लक्ष्य सामने नहीं रखेगा, उसकी उन्नति का ग्राफ नहीं बढ़ेगा। उसे प्रतिदिन, प्रति सप्ताह, प्रति वर्ष अपने कार्यों एवं सफलताओं का मुल्यांकन करना चाहिए एवं कमियों को दूर करते हुए, योजना बद्ध तरीकों से आगे बढ़ना चाहिए। तभी वह निश्चित लक्ष्य तक पहुँच पाएगा। इसका अभाव ही विद्यार्थी और सामाजिक व्यक्ति की असफलता का कारण हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि केवल अथक परिश्रम ही सफलता प्राप्ति का माध्यम नहीं हो सकता बल्कि सुनियोजित योजना भी उतनी ही ज़रूरी है। सुनियोजित योजना का ही प्रतिफल हैं कि सौ कौरवों के आगे पाँच पाण्डवों की जीत हुर्इं।

सुरेश कुमार पाटीदार
अवकाश हेतु प्रार्थना पत्र।